रविवार, 7 जून 2009

लोक दीप

जननी !
जन - गण -मन - जननी !!

तज कर देह- जाती -गत बंधन ,
साध सर्व मंगल हित साधन .
साम्य भुवन -जननी !!

मानवता का अमृत सिंचन ;
वर्ग-भेद-तम-हर शुभ चिंतन.
मुक्त पवन जननी !!

मूक बधिक: अकरुण सिंहासन.
दल-बल-दलित, अनाथ, अकिंचन:
सजल नयन-जननी !!

बंसी-माँदर; कलरव-कूजन;
वन-पल्लव-संगीत; निरंजन ...
विश्व गगन जननी !!

पल पल नवल प्रकृति परिवर्तन...
अभिनंदित वंदित नवजीवन...
जन- लेखन-जननी!!

गति-मय. संहत विप्लव-दर्शन;
गति-लय-संगत, गुण -परिशीलन;
चिर-यौवन-जननी!!

1 टिप्पणी: